नई पुस्तकें >> रौशनी महकती है रौशनी महकती हैसत्य प्रकाश शर्मा
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
Raushani Mahakti Hai - Gazals by Satya Prakash Sharma
मज़हब, ज़बान, नस्ल के टुकड़े समेट कर
हम नंगे ही दिखेंगे ये चिथड़े लपेट कर ।
रौशनी महकती है
तरतीब...
- रौशनी महकती है
- समर्पण
- रौनक मेरे चमन की
- मेरे राहबर...
- शाहिद मेरे सफ़र के...
- हलफ़ उठा के ये कहता हूँ...
- इसलिए दिल परेशान है
- सदियों की रवायत है जो बेकार न कर दें
- बहस को करते हो क्यूँ इस क़दर तवील मियाँ
- दूर कितने क़रीब कितने हैं
- सज़ा नई कोई ईजाद करने वाले हैं
- ये जो अहले-नज़र की बातें हैं
- मयक़दे में शराब थोड़ी है
- अना में रौशनी रखनी पड़ेगी
- माज़ी से मुस्तकबिल तक
- एहसास में हो ‘मीर’, ज़बाँ में ‘असद’ रहे
- कुछ दिखाने के, कुछ छुपाने के
- चोट खाते रहे ज़माने से
- ये तमाशा है सब लकीरों का
- न रौशनी, न इशारा, न राहबर कोई
- क़फ़स बढ़ा दे मेरा आसमान कम कर दे
- सबकी खुशियों की चाह करते हैं
- बयान देता है खुद आसमान, अच्छी है
- ठोकरों में तो बलाएँ रक्खीं
- हम जो थोड़ा-सा डगमगाने लगे
- हाथों पे लिए फिरता है दस्तार हमेशा
- लाख कहता हूँ कि धोख़े खाएगा
- आज जी भर के खिलखिलाए हैं
- मुख़्तसर हो गया फ़साना भी
- ये हुनर है, न होशियारी है
- गर न जज़्बात की क़सम खाएँ
- गुज़रे हुए लम्हात की तफ़सीर सुनेंगे
- मक़ाम अपना इक मोतबर छोड़ दे
- सबके सब ग़म कहाँ पराए हैं
- मेरे एहसास पर जो धारियाँ हैं
- दर्द का फिर गला दबा देगा
- नफ़रत के सिलसिले मिले अज्दाद में जाकर
- आप पर एतबार कर लें क्या
- अपने चेहरे का आब मांगेंगे
- जितने भी मौसम देखे हैं
- अपनी बिसात क्या है मगर ले के जायेंगे
- घबराया दिल तो तेरे ख़यालों में खो गये
- मज़े की बात कि अपना बदन किसी का नहीं
- मेरी उदासियों से मेरी शाम से मिलो
- तस्वीर का रुख़ एक नहीं दूसरा भी है
- आपको हो न एतराज़ कोई
- न हमसे मुहब्बत न खुद से वफ़ा की
- मिसरे प’ तबीयत का जो मिसरा नहीं लगता
- वो कमज़ोर जिनकी कोई छत नहीं है
- मुख़्तलिफ़ रंग-रूप, नस्ल-नाम चेहरों पर
- नज़र उनसे कभी दो-चार होगी
- ज़िन्दगी को तबाह कर डाला
- जब हक़ीक़त ज़बाँ से निकलेगी
- अपना ख़ाना-ख़राब देखा है
- क़ातिलों में ज़मीर ढूंढेंगे
- दर्द दबा कर खुश रहते हो
- अब न होगा कभी फ़ना जैसे
- खुलूस, प्यार, वफ़ा नेक ख़्वाहिशें लेकर
- नेक जो भी उसूल होते हैं
- हर ग़म को अपना माने हैं
- आपको, हमको, सभी को मुँह चिढ़ा जाता है वो
- होना तो चाहिए थे प’ अक्सर नहीं हुये
- हो जा महफ़ूज़ तू दरिया में उतर कर गहरे
- मैं उसे दोस्त भी कहूँ आख़िर
- सहल हो जाये राह थोड़ी-सी
- मंजिल का निशां मील का पत्थर न मिलेगा
- सर पे चढ़ेगी धूप, कभी शाम आएगी
- आन की आन में हर शान किनारे रख दी
- ज़िन्दगी को ये सजावट तुमने दी
- कर ले तू भी सितमगरी कर ले
- कोई रौनक हँसी में है ही नहीं
- चारागर दुश्मनी निकालेगा
- रहता है हमसे दूर ये आलम तेरे बग़ैर
- एक मंज़र के लिए खुशरंग आँखें मर गईं
- कैसी बादल में बिजलियाँ हैं ये
- अपना वजूद रूह पे क़ुर्बान कर के देख
- भीगे वजूद जिसमें वो मौसम कहाँ है यार
- ये तो हम थे कि नसीबों में उजाले आए
- दर्द बिखरे हुए जो हर सू हैं
- जब वो हमारे घर आते हैं
- बहकी-बहकी अगर हवा न चले
- अंजाम हौसलों का अगर ले के आ गया
- घर महकने लगा है खुश्बू से
- रोज़ डस जाए मुझे रात तो नीला हो जाऊँ
- कुछ ऐसा एहतिराम का मंज़र मिला मुझे
- सिलसिले बन के टूटते क्यों हैं
- मैं अश्कों की रवानी लिख रहा हूँ
- मुझे रुसवा करे अब या कि रक्खे उन्सियत कोई
- बात इतनी-सी मोहतरम रखना
- इसलिये ख़त महकता नहीं था
- बेख़ता हूँ न दे सज़ा मुझको
- इसलिये अपना दिल जलाते हैं
- तेरे उमीद, तेरी चाह, इक निगाह बहुत
- ख़याल के हिस्से
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